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    Paradime

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    “पैराडाइम कथानक के रूप में नई है और इसमें चीजों को प्रस्तुत करने की शैली भी नई है। मैंने इस तरह की और कौन-सी कहानी पढ़ी है, मुझे याद नहीं। इसकी स्टोरी लाईन अच्छी है। कहानी के बीच-बीच में हेडिंग डालना अच्छा है। इसमें पैराडाइम का अर्थ जिस तरह से समझाया गया है, वह अभी तक जो पारंपरिक कहानियां हैं, उससे अलग शैली में है। कहानी में फ़्लो (बहाव) है। पढ़ने में फ़्लो बहाव है। इसका अन्त भी अच्छा है। कोई ऐसा अन्त नहीं कि हम किसी नतीजे पर पहुंच जायें। कथानक और शैली के लिहाजा से यह एक नई शुरुआत है। कहानी में कई प्रकार के प्रयोग किये गये हैं। प्रयोगों में नवीनता है। पारंपरिक ढंग से कहानियां जैसे लिखी जाती हैं, पैराडाइम वैसी नहीं है। बहुत सारी चीजों जोड़ी गई हैं, जो अच्छी बात है।” -शिवमूर्ति, वरिष्ठ कथाकार

    90.00
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    Bharat 1857 se 1957 Itihas par ek Drishti

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    पुस्तक का शीर्षक भले ही 1857 से 1957 तक के भारत में सीमित रखा गया हो परंतु 1857 से पूर्व के एक शतक तक की पृष्ठभूमि से ही इसका प्रारंभ किया गया है। पुस्तक के अंतिम अध्याय में भी 1957 के बाद के भारत का भविष्य क्या होगा तथा डॉक्टर  आंबेडकर के सपने के अनुसार क्या हम इस देश के भविष्य को संवार  पाएंगे? यह प्रश्‍न लेखक ने पाठकों के समुख उपस्थित किया है। लेखक का अपने विषय को 1957 तक सीमित रखने के पीछे शायद यही भाव रहा हो कि पंडित नेहरू की सत्ता प्राप्ति के लिए अपनाई गई रणनीति की जानकारी पाठकों तक पहुंचे। लेखक की यह पहली ही पुस्तक है जो पठनीय हुई और यह उनकी साहित्य-यात्रा के लिए एक उत्साहवर्धक बात है।

    150.00
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    Vishvayuddh Aur Czech Sahitya

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    तत्कालीन चेकोस्लोवाकिया और सप्रति चेक गणराज्य के ऐतिहासिक, सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर बदलाव के कई पड़ाव आए हैं जिसे चेक साहित्य में तलाशा जा सकता है। इस राष्ट्र ने विश्वयुद्ध की त्रासदी और नाज़ियों की तानाशाही को सहा है; जिसका प्रत्यक्षऔर अप्रत्यक्ष प्रभाव उनके साहित्य पर भी पड़ा। चेक साहित्यकारों ने अपनी सकारात्मक भूमिका निभाते हुए विश्‍व साहित्य को समृद्ध किया और कई कालजयी कृतियाँ दीं। विश्वयुद्ध कालीन लेखकों में मुख्य रूप से शामिल जोसेफ श्कवोरेस्की, यान ओत्चेनाशेक, मिलान कुन्देरा,कारेल चापेक, फ्रांत्स काफ्का, जुलियस फ़्यूचिक, ईवान क्लीमा, यारोस्लाव साइफ़र्त, यारोस्लाव हासेक, यारोस्लाव फोगलर, ईरी वोल्कर, वॉस्लाव हावेल ने चेक साहित्य को एक नया तेवर प्रदान किया है। लेखक ने इस पुस्तक में चेक साहित्य पर विश्वयुद्ध के प्रभावों का अध्ययन किया है जिसके माध्यम से पाठक का परिचय एक नये संसार से होगा।

    210.00
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    Czech Sahitya Bhasha v Sanskritik Pariprekshya

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    150.00
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    Samkaleen Laghukatha ka Samiksha-Saundarya

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    लघुकथा लेखन को आसान सी विधा मानकर बहुत लोग इस विधा के लेखन की ओर मुड़े और जानेअनजाने अपनी अधकचरी बौद्धिकता और अज्ञान के बूते इस विधा का अहित करते चले गए। इन बहुत से लोगों में वे भी थे जो खालिस पाठक थे और लेखक बनना चाहते थे। जो कुछ बनना चाहते हैं उन्हें कोई नहीं रोक सकता। वे बन गए। वे बिना पढ़े लेखक बन गए। उन्होंने बस उसी तरह की लघुकथाएं पढ़ी थीं और वे उसी तरह के लघुकथा लेखक बन गए। यह विराट स्तर पर धर्म परिवर्तन से भी अधिक संगीन मामला था जिसने साहित्य को बहुत बड़े पैमाने पर चोट पहुंचाई लेकिन इसकी कोई चर्चा नहीं हुई। इस पुस्तक में लघु कथा के सौन्दर्यशास्त्र पर चर्चा की गई है और इस विधा की महत्ता को स्थापित करने का प्रयास ही प्रधान है।

    180.00
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    Kitabon Mein Stree

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    Officia quidem necessitatibus qui. Sit aut et laborum ut a eum. Omnis laboriosam minima alias saepe numquam.

    120.00
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    Khet Poochate Hain

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    120.00
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    Renu Prasang

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    208.00
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    Mujhe Patang ho jana hai

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    120.00
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    Hawa ki Nadi Mein

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    हिन्दी के वरिष्ठ कवि उपेन्द्र कुमार वस्तुतः अधिकार, प्यार, असंगत व्यवस्था को धिक्कार, जनजीवन के परिष्कार, चेतना के उभार और उपादेय परम्परा के स्वीकार के कवि हैं। ये सभी समुज्ज्वल भाव उनकी कविताओं में हर स्थिति में रेखांकित होते हैं। उनकी कविताओं में चिड़िया, पहाड़, पर्वत, नदी, रिश्ते, लिवास, नाम, पहचान, घर, अन्धकार-विरोध, व्यवस्था-विरोध, संचार…जैसे प्रसंगों को पूरी अर्थवत्ता के साथ जगह मिलती है। इनके मूलार्थ आहत करनेवालों पर वे आँखें तरेरते हैं। उनके जनसरोकार और उनकी काव्य-दृष्टि विस्तृत विवेचन की हकदार है।

    156.00
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    Hath Tatha Anya Kavita

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    Cupiditate voluptatem earum iure nam laudantium. Saepe dolorem ea occaecati eius.

    240.00