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Bharat 1857 se 1957 Itihas par ek Drishti
0पुस्तक का शीर्षक भले ही 1857 से 1957 तक के भारत में सीमित रखा गया हो परंतु 1857 से पूर्व के एक शतक तक की पृष्ठभूमि से ही इसका प्रारंभ किया गया है। पुस्तक के अंतिम अध्याय में भी 1957 के बाद के भारत का भविष्य क्या होगा तथा डॉक्टर आंबेडकर के सपने के अनुसार क्या हम इस देश के भविष्य को संवार पाएंगे? यह प्रश्न लेखक ने पाठकों के समुख उपस्थित किया है। लेखक का अपने विषय को 1957 तक सीमित रखने के पीछे शायद यही भाव रहा हो कि पंडित नेहरू की सत्ता प्राप्ति के लिए अपनाई गई रणनीति की जानकारी पाठकों तक पहुंचे। लेखक की यह पहली ही पुस्तक है जो पठनीय हुई और यह उनकी साहित्य-यात्रा के लिए एक उत्साहवर्धक बात है।
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Vishvayuddh Aur Czech Sahitya
0तत्कालीन चेकोस्लोवाकिया और सप्रति चेक गणराज्य के ऐतिहासिक, सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर बदलाव के कई पड़ाव आए हैं जिसे चेक साहित्य में तलाशा जा सकता है। इस राष्ट्र ने विश्वयुद्ध की त्रासदी और नाज़ियों की तानाशाही को सहा है; जिसका प्रत्यक्षऔर अप्रत्यक्ष प्रभाव उनके साहित्य पर भी पड़ा। चेक साहित्यकारों ने अपनी सकारात्मक भूमिका निभाते हुए विश्व साहित्य को समृद्ध किया और कई कालजयी कृतियाँ दीं। विश्वयुद्ध कालीन लेखकों में मुख्य रूप से शामिल जोसेफ श्कवोरेस्की, यान ओत्चेनाशेक, मिलान कुन्देरा,कारेल चापेक, फ्रांत्स काफ्का, जुलियस फ़्यूचिक, ईवान क्लीमा, यारोस्लाव साइफ़र्त, यारोस्लाव हासेक, यारोस्लाव फोगलर, ईरी वोल्कर, वॉस्लाव हावेल ने चेक साहित्य को एक नया तेवर प्रदान किया है। लेखक ने इस पुस्तक में चेक साहित्य पर विश्वयुद्ध के प्रभावों का अध्ययन किया है जिसके माध्यम से पाठक का परिचय एक नये संसार से होगा।
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Czech Sahitya Bhasha v Sanskritik Pariprekshya
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Samkaleen Laghukatha ka Samiksha-Saundarya
0लघुकथा लेखन को आसान सी विधा मानकर बहुत लोग इस विधा के लेखन की ओर मुड़े और जाने–अनजाने अपनी अधकचरी बौद्धिकता और अज्ञान के बूते इस विधा का अहित करते चले गए। इन बहुत से लोगों में वे भी थे जो खालिस पाठक थे और लेखक बनना चाहते थे। जो कुछ बनना चाहते हैं उन्हें कोई नहीं रोक सकता। वे बन गए। वे बिना पढ़े लेखक बन गए। उन्होंने बस उसी तरह की लघुकथाएं पढ़ी थीं और वे उसी तरह के लघुकथा लेखक बन गए। यह विराट स्तर पर धर्म परिवर्तन से भी अधिक संगीन मामला था जिसने साहित्य को बहुत बड़े पैमाने पर चोट पहुंचाई लेकिन इसकी कोई चर्चा नहीं हुई। इस पुस्तक में लघु कथा के सौन्दर्यशास्त्र पर चर्चा की गई है और इस विधा की महत्ता को स्थापित करने का प्रयास ही प्रधान है।
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Kitabon Mein Stree
0Officia quidem necessitatibus qui. Sit aut et laborum ut a eum. Omnis laboriosam minima alias saepe numquam.
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Khet Poochate Hain
0Nemo et dolorem vel voluptate voluptatem corrupti. Sapiente aut qui id rem. Rerum quaerat voluptate eaque deserunt autem aut. Doloribus eaque vero quia non recusandae.
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Renu Prasang
1Id non eveniet aut harum quisquam a illo. Dolores illum dolor eligendi voluptatem et.
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Mujhe Patang ho jana hai
0Consequatur consequuntur doloremque facere voluptatem explicabo et molestiae. Qui esse consequuntur magni.
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Hawa ki Nadi Mein
0हिन्दी के वरिष्ठ कवि उपेन्द्र कुमार वस्तुतः अधिकार, प्यार, असंगत व्यवस्था को धिक्कार, जनजीवन के परिष्कार, चेतना के उभार और उपादेय परम्परा के स्वीकार के कवि हैं। ये सभी समुज्ज्वल भाव उनकी कविताओं में हर स्थिति में रेखांकित होते हैं। उनकी कविताओं में चिड़िया, पहाड़, पर्वत, नदी, रिश्ते, लिवास, नाम, पहचान, घर, अन्धकार-विरोध, व्यवस्था-विरोध, संचार…जैसे प्रसंगों को पूरी अर्थवत्ता के साथ जगह मिलती है। इनके मूलार्थ आहत करनेवालों पर वे आँखें तरेरते हैं। उनके जनसरोकार और उनकी काव्य-दृष्टि विस्तृत विवेचन की हकदार है।
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Hath Tatha Anya Kavita
0Cupiditate voluptatem earum iure nam laudantium. Saepe dolorem ea occaecati eius.