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Pakistan ki Gini Chuni Urdu Kahaniyan-1
0कोई भी चयन अपनी जगह मुकम्मल नहीं हो सकता। इस चयन की भी कुछ सीमाएं और शर्तें हैं जिनको बताना ज़रूरी है। इस चयन को पाकिस्तान में लिखे जाने वाली बेहतरीन कहानियों के संग्रह के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जा रहा है। ऐसी योजना के लिए कहीं ज़्यादा बड़े कैनवस और बड़े हौसले की ज़रूरत है। हमें उम्मीद है कि यह चयन अपने पाठक को पाकिस्तान की उर्दू कहानियों के बस इतने ही अध्ययन से संतुष्ट कर देने के बजाए और तलाश और अध्ययन पर उकसाएगा। संग्रह के पहले खंड में एक तरफ़ जहां भारतीय पाठकों में चिर परिचित नाम अहमद नदीम क़ासमी, इंतिज़ार हुसैन, खालिदा हुसैन, खदीजा मस्तूर, ग़ुलाम अब्बास, मंशा याद, मसऊद मुफ़्ती, मुमताज़ मुफ़्ती, बानो कुदसिया और शौकत सिद्दीक़ी की कहानियाँ शामिल की गई हैं, वहीं संग्रह के दूसरे खंड में मिसेज़ अब्दुल क़ादिर, अशफ़ाक़ अहमद, आग़ा सुहैल, आग़ा गुल, इब्राहीम जलीस, नजमुल हसन, नासिर बग़दादी, फ़िरदौस हैदर, हमीद क़ैसर और हाजिरा मसरूर की कहानियाँ को भी शामिल किया गया है।
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Pakistan ki Gini Chuni Urdu Kahaniyan-2
0कोई भी चयन अपनी जगह मुकम्मल नहीं हो सकता। इस चयन की भी कुछ सीमाएं और शर्तें हैं जिनको बताना ज़रूरी है। इस चयन को पाकिस्तान में लिखे जाने वाली बेहतरीन कहानियों के संग्रह के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जा रहा है। ऐसी योजना के लिए कहीं ज़्यादा बड़े कैनवस और बड़े हौसले की ज़रूरत है। हमें उम्मीद है कि यह चयन अपने पाठक को पाकिस्तान की उर्दू कहानियों के बस इतने ही अध्ययन से संतुष्ट कर देने के बजाए और तलाश और अध्ययन पर उकसाएगा। संग्रह के पहले खंड में एक तरफ़ जहां भारतीय पाठकों में चिर परिचित नाम अहमद नदीम क़ासमी, इंतिज़ार हुसैन, खालिदा हुसैन, खदीजा मस्तूर, ग़ुलाम अब्बास, मंशा याद, मसऊद मुफ़्ती, मुमताज़ मुफ़्ती, बानो कुदसिया और शौकत सिद्दीक़ी की कहानियाँ शामिल की गई हैं, वहीं संग्रह के दूसरे खंड में मिसेज़ अब्दुल क़ादिर, अशफ़ाक़ अहमद, आग़ा सुहैल, आग़ा गुल, इब्राहीम जलीस, नजमुल हसन, नासिर बग़दादी, फ़िरदौस हैदर, हमीद क़ैसर और हाजिरा मसरूर की कहानियाँ को भी शामिल किया गया है।
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Parivar ki Khushi
0लेव तोलस्तोय ने कुछ लघु उपन्यासाें की भी रचना की थी। उन रचनाओं के हिन्दी अनुवाद उपलब्ध नहीं थे। हिंदी पाठकों के लिए विदेशी साहित्य के अध्येता विवेक दुबे ने यह महति कार्य किया है। इस रचना को प्रस्तुत करते हुए हमें बहुत खुशी हो रही है।
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PolyKushka
0लेव तोलस्तोय ने कुछ लघु उपन्यासाें की भी रचना की थी। उन रचनाओं के हिन्दी अनुवाद उपलब्ध नहीं थे। हिंदी पाठकों के लिए विदेशी साहित्य के अध्येता विवेक दुबे ने यह महति कार्य किया है। इस रचना को प्रस्तुत करते हुए हमें बहुत खुशी हो रही है।
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Punarsrijan Mein Renu
0पूर्वज कथाकारों की कालजयी कहानियों से गुजरते हुए यह प्रश्न कई बार सामने आता है कि आज यदि वे कथाकार हमारे साथ होते और अपनी उन्हीं कहानियों को फिर से लिखते तो उनका स्वरूप क्या होता? अपने पूर्ववर्ती कथाकारों की उन खास कहानियों को बार-बार पढ़ते हुये बाद के किसी कथाकार के भीतर यह भाव आना भी अस्वाभाविक नहीं कि ‘यदि इन कहानियों को मैं लिखता तो कैसे लिखता’? अमर कथाशिल्पी फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ की छ: प्रतिनिधि कहानियों की पुनर्रचना और उनके विश्लेषण के बहाने यह पुस्तक स्वप्न, चुनौती और जोखिम से भरे ऐसे ही प्रश्नों के उत्तरों की तलाश करता है। पुनर्सृजित कहानियों का ऐसा संग्रह विश्व साहित्य के इतिहास में पहली बार प्रकाशित हो रहा है।
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Pustaknama Sahitya Varshiki 2023
0साहित्य, कला और विचार की पारस्परिकता से निर्मित ‘पुस्तकनामा’ का यह वार्षिक आयोजन, जिसके प्रथमांक को हमने ‘चेतना का देश-राग’ नाम दिया है, ऐसी ही रचनायात्राओं की शृंखला में एक नई कड़ी की तरह जुड़ रहा है। हमारे समय की प्रतिनिधि रचनाशीलता की विश्वसनीय आवाजों को समेटे लगभग तीन सौ पृष्ठों की यह पत्रिका विश्व पुस्तक मेले में आपके हाथों में होगी।
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Rajbhasha Hindi aur Ashmitabodh
0इस समय भाषा को लेकर बड़ा कोलाहल है। इसकी बड़ी वजह राजनीतिक पहचान की कामना में निहित जटिल संरचना है। जब-जब सत्ता का हिस्सा बंटने-बंटाने की गतिविधियां तेज होती हैं वे सारे तत्त्व खोजकर खड़े किए जाते हैं, जिनसे ‘अपने पक्ष’ का संघर्ष तेज हो सके। जैसे हिंदी को यों तो उर्दू के साथ मौसी की तरह कहते लोकप्रिय मंचों के मुहावरेकार तालियां लूटते हैं, लेकिन राजनीतिक लूट के वक्त यही वर्ग विशेष की पहचान निरूपित होने लगती है। चूंकि भाषा, मातृ भाषा, राष्ट्र भाषा जैसे प्रश्न भारत के संदर्भ में बहुत संवेदनशील रहे हैं, इसलिए हर कोई अपने अपने हिसाब से इन्हें सुलझाने का दावा करता है। क्षेत्रीय अस्मिताएं, स्थानीय राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं, अखिल भारतीय सांस्कृतिक स्वरूप, प्रशासनिक ताना बाना तथा इतिहास की छायाएं, सब मिलकर कभी कभी कारुणिक स्थिति बना देते हैं। ऐसे माहौल में जबकि राजा शिवप्रसाद और भारतेंदु से लेकर गांधी, लोहिया तक वैचारिक रूप से हमारे पास मौजूद हैं, फिलहाल कई तरह के वर्ग भाषा को लेकर सक्रिय हैं। एक वे हैं जो लुप्त होती भाषाओं के साथ उनकी सामाजिकी पर गहन शोध चिंतन कर रहे हैं। कुछ हैं जो ऊंची-ऊंची सभा-गोष्ठियों, मेलों, मंचों से शौर्यपूर्वक अपने पक्ष रेखांकित करते रहते हैं। कुछ वे हैं,जो समय-समय पर उठने वाले प्रश्नों को संबोधित कर उनकी जटिलताओं से आमजन को परिचित कराने की कोशिश करते हैं।
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Safal Andolan Huye Asafal
0101 दिनों तक मुस्लिम महिलाओं द्वारा शालीनता से चलाया गया शाहीनबाग आंदोलन देश का अकेला विश्वसनीय उदाहरण है। सत्ता की दमनकारी नीतियों से विचलित न होने वाली महिलाओं ने यह साबित कर दिया कि न्यायोचित मांग के लिए आंदोलन को जिंदा रखना है और लोगों की नफरत, घृणा व निन्दा को सहन करना है। वे अपने मकसद में कामयाब नहीं हुई क्योंकि तालाबन्दी की घोषणा होते ही आंदोलन समाप्त हुआ। 378 दिनों तक चले किसान आंदोलन से सत्ता और किसान एक दूसरे से भयभीत रहे। सत्ता की यातना से आंदोलनकारियों के खामोश आँसू उनके हृदय के दुख और शोक को मुखरित करते रहे। हर दिन संघर्ष और यातना का मिलन होता रहा। किसानों की लम्बी तपस्या के बाद तीन विवादित कृषि कानून निरस्त हुए लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून नहीं बना। आंदोलन समाप्त हुआ। संघर्ष की लम्बी यात्रा को संतोषजनक कहा जा सकता है।
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Sagwan Kisi Ped Ka Naam Nahi
0कविता संस्कृति है। यह काल या स्थान विशेष में स्थिर नहीं। कविता आरंभ से सृष्टि को संबोधित है। कविता के केंद्र में प्रकृति सदैव रही है। ओम नागर का यह संग्रह इसी भावभूमि से अतीत की स्मृतियों को वर्तमान और भविष्य से जोड़ता है, जिसमें मनुष्य द्वारा किया जा रहा शोषण, दोहन और अत्याचार शामिल है। सृष्टि का रहस्य जाने बिना कविता संस्कृति का रहस्य समझ नहीं आता। इसके लिए वैज्ञानिक सोच के साथ सत्ता की दुर्नीति को समझना अपरिहार्य है। कवि की चेतना इस दृष्टि से जागृत है। वह पंच महाभूतों के शाश्वत महत्व से परिचित है। ओम ने एक विषय के आलोक में विश्व चेतना को पकड़ रखा है। यही कविता का धर्म है। विनोदकुमार शुक्ल ने लिखा है–‘समय पड़ने पर पृथ्वी का साथ कौन देगा।’ वह समय जलवायु परिवर्तन के साथ भीषण रूप में प्रत्यक्ष हो रहा है। ये संकेत आगत प्रकृति की भविष्यवाणी है। साथ में युद्ध के प्रभाव जैव पारिस्थितिकी के असंतुलन को बढ़ा रहे हैं। इन हालात में ओम नागर की कविताएं लोक चेतावनी है। इनमें प्रकृति को विनाश से बचाने के वास्ते,मनुष्यता की अंत:शुद्धि के पाठ भी सन्निहित हैं।
–लीलाधर मंडलोई -
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Sakshatkar Se Sakshatkar
0यह किताब डॉ. भारत भूषण उपाध्याय के समय-समय पर पत्रिकाओं में प्रकाशित लेखों का संग्रह है। शेक्सपियर, गांधी, बोर्हेस, स्टाइनबेक, ओरियाना फलासी पर लिखे गये इन लेखों को कथादेश, अकार और पहल जैसी पत्रिकाओं ने प्रकाशित किया था। इऩ निबंधों में परिश्रम और समर्पण से एकत्र की गयी जरूरी जानकारियाँ हैं। असाधारण प्रतिभा और प्रज्ञा लिए हुए लोगों के जीवन की सच्चाइयाँ और स्वप्न हैं वहीं अपनी पढ़ी गयी विस्तृत चीजों को दूसरों के लिए रुचिकर, संक्षिप्त और जरूरी बनाए जाने का समर्पित संघर्ष भी। यहाँ यह भी बताना जरूरी लग रहा है कि इस किताब में जिन विषयों को अपने फोकस में रखा गया है उनकी गहरी, विस्तृत और समकालीन जानकारियाँ हिन्दी में बहुत ही कम उपलब्ध हैं।
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