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Samvad Path
0अंबरीश त्रिपाठी हमारे समय के एक संभावनाशील युवा आलोचक हैं। कृति, कृतित्व और उसका युगबोध इस लेखक के लिए निकट और सापेक्षतामूलक विधान हैं। विषय को ऐसे विस्तृत गतिशील परिप्रेक्ष्य से ग्रहण करना कि वह अपनी सर्वकालिक मूल्यचेतना में आलोकित होकर सामने आए, किसी भी आलोचक के आलोचनात्मक विवेक का सबसे ज़रूरी पक्ष है। साहित्य और संस्कृति के विषय गहरे सांस्कृतिक नैरंतर्य का साक्ष्य होते हैं और इस निरंतरता के प्रकाश की नवैयतें देशकाल के अनुसार बदल कर भी जीवन मूल्यों के हिसाब से भीतर कहीं गहरी एकतानता में हुआ करती हैं। ‘संवाद पथ’ के आलोचनात्मक आलेखों में ऐसा ही वैविध्य मिलता है तथा एकता का रंग भी यही है। यहां राम हैं, भक्ति युग है, गांधी हैं, टैगोर हैं तो विनोद कुमार शुक्ल भी हैं। आलोचनात्मक विश्लेषण के लिए चुने गए विषय होकर आए ये सीमित पाठ भर नहीं हैं । यहां यह रेखांकित है कि समाज और संस्कृति की गतिशील लोकपक्षीयता का मूल्य ही वह कसौटी है जिससे व्यापक स्वीकार्यता तय होती है। इस किताब की भाषा ने बहुत आश्वस्त किया है। इसमें चिंतन विश्लेषण का प्रवाही रंग है। साहित्य के कोमल मानवीय आयामों का लालित्य संभालने वाली खूबी तो है ही,साथ ही एक मौलिक उठान भी है जो हमें विषय के सुंदरतम पक्षों से जोड़ती चलती है।
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Siyah
0भवेश दिलशाद की कुछ ग़ज़लें पढ़ने के बाद लगा कि मैंने उनका कलाम पहले क्यों नहीं देखा। हिंदोस्तानी ग़ज़ल में जो बहुत सार्थक और चुनौती भरी रचना हो रही है, उसका एक ज्वलंत उदाहरण दिलशाद हैं।
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Surkh
0बनाव-सिंगार, बाग़, तितली, भोग-विलास से कोत तो क्या, बस पहाड़, जंगल, खाई, ख़ला, समन्दर, ये सब मुझे ज़ियादा पुकारते रहे। ये रहस्य, सन्नाटे, चुनौतियां और बेबाकियां। कभी हैरान करती रहीं, कभी तलाश तो कभी मुझे बयान। छटपटाहट, घुटन, कसक और उन्हीं लमहों में पूरी फ़क़ीरी, ज़िद और विध्वंस भी… इसी दौर में वो मुझे मिली।
घूंघट, पर्दे और नक़्ली ज़ेवरों के बोझ से घुटी-घुटी सी। दोनों ने तनहाई चुनी पर सच से चौंककर हम कतराये तो नहीं। एक-दूसरे का हाथ थामे बढ़ते रहे। एक-दूजे को जानने, पहचानने से चला सिलसिला समझने और महसूसने तक पहुंचा। फिर ढलने और पिघलने तक। बाहिर बरसों और यूं सदियों का सफ़र करते हम इकाई में रच-बस गये। अपने ही ढंग से, अपनी ही एक दुनिया में… वो मेरा पहला प्यार और इकलौती क़सम हो चुकी।
प्यार, सफ़र, सिलसिला चल रहा है। चलता रहेगा। हम अपनी एक दुनिया बसा लेंगे। नहीं तो किसी अतल, अबूझ या गुमनाम कोने में एक-दूजे के सहारे जी लेंगे। हर क़दम नयी-नयी बेचैनियों, ख़लिशों के साथ वही सरमस्ती है। जबात की उथल-पुथल है। न चाहे भी रहेगी। इसी सफ़र के बीच इस ट्रायोलॉजी की शक्ल में खींच ली गयी मेरी और मेरी शाइरी की यह तस्वीर यहीं रह जाएगी। हमेशा के लिए! -भवेश दिलशाद -
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Taki Sanad Rahe
0इन कविताओं में हमारे आसपास की दुनिया के बिम्ब हैं। ये कविताएँ बताती हैं कि गाँव से निकली शहर जाने वाली सड़क वापस कभी नहीं लौटती हैं। इन कविताओं में रोहिड़े के फूल जैसे सुंदर नैसर्गिक जीवन की कामना है। मनुज ना बन पाने की टीस है। यहाँ ईश्वर एक लंबी उबाऊ गद्य कविता है। औरत अयस्कों का अजायबघर घर है। इन कविताओं में दर्द के आख्यान है वहीं खुशियों को ढूँढने के रोड मैप भी है। रोटी के अर्थशास्त्र को भूख से जोड़ा है और मज़दूर को विकास क्रम पर हाशिये पर खड़ा करके उससे सवाल पूछा जा रहा है। ये कविताएं सरलता और सहजता से कुछ सवाल भी पूछती हैं जिनके उत्तर हम सभी को देने हैं।
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Tang Galiyon Se Bhi Dikhta Hai Akash
0यह स्त्रियों की मार्फत मानव सभ्यता और मानव ङ्क्षचतन का कहानी संकलन है। हमारा सौभाग्य है कि ङ्क्षहदी में ऐसा संकलन हमारे हाथ में यादवेंद्र जी ने दिया।इस संकलन में सभी विदेशी कहानियां हैं पर शीर्षक भारतीय स्त्री के संदर्भ में सोचा गया है। मैं इसे भारतीय स्त्री-विमर्श की एक कड़ी मानता हूँ। —लीलाधर जगूड़ी
मेरा मानना है कि हिंदी में ही नहीं बल्कि भारतीय भाषाओं में अब तक अनूदित कहानियों के जितने संकलन हैं उनमें यह किताब इसलिए विशिष्ट है क्योंकि पहली बार छह महादेशों के 25 देशों की 27 स्त्री कहानीकारों की कहानियां इसमें शामिल हैं। दुनिया का कोई प्रश्न ऐसा नहीं है जो इसमें शामिल न किया गया हो। —प्रो. रविभूषण -
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Tum Zindagi Ka Namak Ho
0तुम्हारी स्मृतियाँ इतनी गहरी हैं, जैसे नये-नकोर मकान पर कोई बच्चा ईंट के टुकडे से गुस्से में अपना नाम लिख दे। जैसे अलभोर ने रचा है धुंधलको को। रात रचती है सुबह की रोशनी। हर प्रेम रचता है अथवा यूँ कहेंं रचेगा आँसू। आज मेरे यार की शादी है, बैंड में नाच रहे होते हैं कुछ लोग। मगर कहीं दूर सूड़क रही होती है कोई नाक को। आँसू, जो दजला-फरात बनकर उसके गले में भर आए हैं। रोती है बाथरूम में जाकर जार-जार। -इसी किताब से
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Ward No. 6
0चेख़व स्वयं डॉक्टर थे। अस्पतालों के भीतर के क्रियाकलापों से अनभिज्ञ नहीं थे। इस उपन्यासिका का मुख्य पात्र एंड्री एफिमिच भी डॉक्टर है, जो एक नए अस्पताल में कार्य-भार संभालता है। शुरुआती दिनों में वह महसूस करता है कि मरीज किस तरह की भयावह स्थिति में रहते हैं। हालांकि उसका मानना है कि उन्हें बदलने के लिए कुछ नहीं किया जा सकता है। पाठक मनोरोग वार्ड नंबर 6 के निवासियों से परिचित होता है। उनमें ग्रोमोव नामक एक रोगी है। यह उपन्यासिका डॉक्टर एंड्री एफिमिच और रोगी ग्रोमोव के दार्शनिक संघर्ष की पड़ताल करती है। रोगी ग्रोमोव हर तरफ व्याप्त अन्याय की निंदा करता है, जबकि डॉ. एंड्री एफिमिच अन्याय और अन्य बुराइयों की अनदेखी करने पर जोर देता है। यह माना गया कि उपन्यासिका में मानसिक वार्ड को रूस और अभिजात वर्ग के पागलपन के प्रतीक के रूप में दर्शाया गया था, जिन्होंने रूस की समस्याओं से निपटने के बजाय उन्हें नजरंदाज करने का विकल्प चुना।
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Yatna Shivir Mein Sathinein
0कवि जॉन गुजलॉव्स्की के युवा कवि देवेश पथ सारिया द्वारा अनूदित इस कविता संग्रह का पहला खण्ड युद्ध और यातना के अनुभवों पर आधारित है। इस पुस्तक के दूसरे खण्ड में अमेरिकी जीवन है। यहाँ भी कवि की रचना-प्रक्रिया पर युद्ध की छाया देखी जा सकती है। यह युद्धग्रस्तता ही है कि आदमी अपनी क्षमता के बरअक्स पेड़ों के जीवन को स्थिर और ईश्वर की तरह स्थितप्रज्ञ देखता है। तीसरे खण्ड की कविताओं में जापानी बौद्ध भिक्षु इक्यु की यात्रा है। इन कविताओं में दक्षिण-पूर्व एशियाई कविता शैली और लयात्मकता लक्षित होती है। इक्यु की काव्य कथाओं को पढ़ते हुए कुछ शिक्षाप्रद ज़ेन कथाएँ याद आती हैं। देखा जाए तो संग्रह का पहला खण्ड जहाँ युद्ध की छाया से पटा है, वहीं तीसरे व अंतिम खण्ड में शांति विराज रही है। युद्ध और शांति के बीच के दूसरे खण्ड में इन दोनों छोरों को छूता जीवन है, जिसमें प्रेम और प्रकृति के रंग भरे हैं।
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Thaka Suraj Chamakta hai
0लंबी कविता आधुनिक साहित्य का वैकल्पिक खंडकाव्य है। इसकी शुरुआत क्यों हुई, यह विचारणीय मुद्दा है। ध्यान खींचने योग्य तथ्य है, कि यह उपविधा के रुप में महाकाव्यों के लगभग अवसान के पश्चात प्रकट हुई। 20वीं सदी में बृहद उपन्यासों को जीवन का महाकाव्यात्मक आयान कहा गया, जो कि तर्कपूर्ण भी है। सही अर्थों में उपन्यास ही महाकाव्य के विकल्प सिद्ध होते हैं, अन्य कोई भी विधा नहीं। इस नजरिए से ल़ंबी कविता की अपनी अलग विशिष्टता, पहचान और प्रकृति है। लंबी कविता कविता का ही बहुदिशात्मक विस्तार है। वर्तमान की कुरुपताओं को मात देकर भविष्य के लिए प्रशस्त जनपथ का निर्माण करना लंबी कविता का मूलभूत दायित्व है। यह संग्रह निश्चय ही अपनी धारा प्रशस्त करेगा।