• -10%

    Tang Galiyon Se Bhi Dikhta Hai Akash

    0

    यह स्त्रियों की मार्फत मानव सभ्यता और मानव ङ्क्षचतन का कहानी संकलन है। हमारा सौभाग्य है कि ङ्क्षहदी में ऐसा संकलन हमारे हाथ में यादवेंद्र जी ने दिया।इस संकलन में सभी विदेशी कहानियां हैं पर शीर्षक भारतीय स्त्री के संदर्भ में सोचा गया है। मैं इसे भारतीय स्त्री-विमर्श की एक कड़ी मानता हूँ। —लीलाधर जगूड़ी
    मेरा मानना है कि हिंदी में ही नहीं बल्कि भारतीय भाषाओं में अब तक अनूदित कहानियों के जितने संकलन हैं उनमें यह किताब इसलिए विशिष्ट है क्योंकि पहली बार छह महादेशों के 25 देशों की 27 स्त्री कहानीकारों की कहानियां इसमें शामिल हैं। दुनिया का कोई प्रश्न ऐसा नहीं है जो इसमें शामिल न किया गया हो। —प्रो. रविभूषण

    360.00
  • -10%

    Titliyon Ke Shahar Mein

    1
    180.00
  • -10%

    Tum Zindagi Ka Namak Ho

    0

    तुम्हारी स्मृतियाँ इतनी गहरी हैं, जैसे नये-नकोर मकान पर कोई बच्चा ईंट के टुकडे से गुस्से में अपना नाम लिख दे। जैसे अलभोर ने रचा है धुंधलको को। रात रचती है सुबह की रोशनी। हर प्रेम रचता है अथवा यूँ कहेंं रचेगा आँसू। आज मेरे यार की शादी है, बैंड में नाच रहे होते हैं कुछ लोग। मगर कहीं दूर सूड़क रही होती है कोई नाक को। आँसू, जो दजला-फरात बनकर उसके गले में भर आए हैं। रोती है बाथरूम में जाकर जार-जार। -इसी किताब से

    108.00
  • -10%

    Ward No. 6

    0

    चेख़व स्वयं डॉक्टर थे। अस्पतालों के भीतर के क्रियाकलापों से अनभिज्ञ नहीं थे। इस उपन्यासिका का मुख्य पात्र एंड्री एफिमिच भी डॉक्टर है, जो एक नए अस्पताल में कार्य-भार संभालता है। शुरुआती दिनों में वह महसूस करता है कि मरीज किस तरह की भयावह स्थिति में रहते हैं। हालांकि उसका मानना है कि उन्हें बदलने के लिए कुछ नहीं किया जा सकता है। पाठक मनोरोग वार्ड नंबर 6 के निवासियों से परिचित होता है। उनमें ग्रोमोव नामक एक रोगी है। यह उपन्यासिका डॉक्टर एंड्री एफिमिच और रोगी ग्रोमोव के दार्शनिक संघर्ष की पड़ताल करती है। रोगी ग्रोमोव हर तरफ व्याप्त अन्याय की निंदा करता है, जबकि डॉ. एंड्री एफिमिच अन्याय और अन्य बुराइयों की अनदेखी करने पर जोर देता है। यह माना गया कि उपन्यासिका में मानसिक वार्ड को रूस और अभिजात वर्ग के पागलपन के प्रतीक के रूप में दर्शाया गया था, जिन्होंने रूस की समस्याओं से निपटने के बजाय उन्हें नजरंदाज करने का विकल्प चुना।

    108.00
  • -10%
  • -10%

    Yatna Shivir Mein Sathinein

    0

    कवि जॉन गुजलॉव्स्की के युवा कवि देवेश पथ सारिया द्वारा अनूदित इस कविता संग्रह का पहला खण्ड युद्ध और यातना के अनुभवों पर आधारित है। इस पुस्तक के दूसरे खण्ड में अमेरिकी जीवन है। यहाँ भी कवि की रचना-प्रक्रिया पर युद्ध की छाया देखी जा सकती है। यह युद्धग्रस्तता ही है कि आदमी अपनी क्षमता के बरअक्स पेड़ों के जीवन को स्थिर और ईश्वर की तरह स्थितप्रज्ञ देखता है। तीसरे खण्ड की कविताओं में जापानी बौद्ध भिक्षु इक्यु की यात्रा है। ‌इन कविताओं में दक्षिण-पूर्व एशियाई कविता शैली और लयात्मकता लक्षित होती है। इक्यु की काव्य कथाओं को पढ़ते हुए कुछ शिक्षाप्रद ज़ेन कथाएँ याद आती हैं। देखा जाए तो संग्रह का पहला खण्ड जहाँ युद्ध की छाया से पटा है, वहीं तीसरे व अंतिम खण्ड में शांति विराज रही है। युद्ध और शांति के बीच के दूसरे खण्ड में इन दोनों छोरों को छूता जीवन है, जिसमें प्रेम और प्रकृति के रंग भरे हैं।

    180.00
  • -25%

    Thaka Suraj Chamakta hai

    0

    लंबी कविता आधुनिक साहित्य का वैकल्पिक खंडकाव्य है। इसकी शुरुआत क्यों हुई, यह विचारणीय मुद्दा है। ध्यान खींचने योग्य तथ्य है, कि यह उपविधा के रुप में महाकाव्यों के लगभग अवसान के पश्चात प्रकट हुई। 20वीं सदी में बृहद उपन्यासों को जीवन का महाकाव्यात्मक आयान कहा गया, जो कि तर्कपूर्ण भी है। सही अर्थों में उपन्यास ही महाकाव्य के विकल्प सिद्ध होते हैं, अन्य कोई भी विधा नहीं। इस नजरिए से ल़ंबी कविता की अपनी अलग विशिष्टता, पहचान और  प्रकृति है। लंबी कविता कविता का ही बहुदिशात्मक विस्तार है। वर्तमान की कुरुपताओं को मात देकर भविष्य के लिए प्रशस्त जनपथ का निर्माण करना लंबी कविता का मूलभूत दायित्व है। यह संग्रह निश्‍चय ही अपनी धारा प्रशस्त करेगा।

    150.00
  • -10%

    Sahayata Tatha Anya Kahaniyan

    0

    चेक साहित्य का नाम सुनते ही पिछली सदी के जिन चेक लेखकों का ध्यान आता है, उनमें कारेल चापेक, जोसेफ श्कवोरेस्की, ब्लादीमीर पारेल, ईवान क्लीमा, लुदवीक वाकुलिक, ओता पावेल, वॉस्लाव हावेल, ईरी ग्रुसा, मिरोस्लाव होबुल, बोहुमिल हराबल, यान ओत्चेनाशेक, यारोस्लाव हासेक, अर्नोश्त लुस्तिग, यारोस्लाव पुतीक, लुदवीक अश्केनात्शी, ईरी वोल्कर, जुलियस यूचिक, यारोस्लाव साइफर्त, फ्रान्तिशेक राखलीक, फ्रान्तिशेक पिलार आदि प्रमुा हैं। इनका कालखंड लगभग विश्वयुद्ध के आस-पास का रहा है। दुर्भाग्यवश हमारा यूरोप के केन्द्रीय और पूर्वी देशों के साहित्य से परिचय बहुत सीमित रहा है। अँग्रेजी के माध्यम से यूरोप के साहित्य की जो जानकारी हमें मिली वह अपर्याप्त है। प्रस्तुत कहानी-संग्रह का यह एक प्रयास है कि विश्वयुद्ध से जुड़ी चेक कहानियों से गुजरते हुए वहाँ की तत्कालीन परिस्थितियों का ज्ञान हो और वहाँ की सामाजिक-सांस्कृतिक स्थितियों से परिचय भी।

    180.00
  • -25%

    Loving my dead wife

    0

    Nam beatae reprehenderit est odio. Perspiciatis recusandae voluptatibus eveniet alias accusantium voluptatem ea. Ut sapiente quia voluptates eum molestiae autem doloremque. Est a et libero.

    150.00
  • -10%

    Paradime

    0

    “पैराडाइम कथानक के रूप में नई है और इसमें चीजों को प्रस्तुत करने की शैली भी नई है। मैंने इस तरह की और कौन-सी कहानी पढ़ी है, मुझे याद नहीं। इसकी स्टोरी लाईन अच्छी है। कहानी के बीच-बीच में हेडिंग डालना अच्छा है। इसमें पैराडाइम का अर्थ जिस तरह से समझाया गया है, वह अभी तक जो पारंपरिक कहानियां हैं, उससे अलग शैली में है। कहानी में फ़्लो (बहाव) है। पढ़ने में फ़्लो बहाव है। इसका अन्त भी अच्छा है। कोई ऐसा अन्त नहीं कि हम किसी नतीजे पर पहुंच जायें। कथानक और शैली के लिहाजा से यह एक नई शुरुआत है। कहानी में कई प्रकार के प्रयोग किये गये हैं। प्रयोगों में नवीनता है। पारंपरिक ढंग से कहानियां जैसे लिखी जाती हैं, पैराडाइम वैसी नहीं है। बहुत सारी चीजों जोड़ी गई हैं, जो अच्छी बात है।” -शिवमूर्ति, वरिष्ठ कथाकार

    135.00
  • -10%

    Bharat 1857 se 1957 Itihas par ek Drishti

    0

    पुस्तक का शीर्षक भले ही 1857 से 1957 तक के भारत में सीमित रखा गया हो परंतु 1857 से पूर्व के एक शतक तक की पृष्ठभूमि से ही इसका प्रारंभ किया गया है। पुस्तक के अंतिम अध्याय में भी 1957 के बाद के भारत का भविष्य क्या होगा तथा डॉक्टर  आंबेडकर के सपने के अनुसार क्या हम इस देश के भविष्य को संवार  पाएंगे? यह प्रश्‍न लेखक ने पाठकों के समुख उपस्थित किया है। लेखक का अपने विषय को 1957 तक सीमित रखने के पीछे शायद यही भाव रहा हो कि पंडित नेहरू की सत्ता प्राप्ति के लिए अपनाई गई रणनीति की जानकारी पाठकों तक पहुंचे। लेखक की यह पहली ही पुस्तक है जो पठनीय हुई और यह उनकी साहित्य-यात्रा के लिए एक उत्साहवर्धक बात है।

    225.00
  • -10%

    Mujhe Patang ho jana hai

    0

    Consequatur consequuntur doloremque facere voluptatem explicabo et molestiae. Qui esse consequuntur magni.

    180.00