Description
भवेश दिलशाद की कुछ ग़ज़लें पढ़ने के बाद लगा कि मैंने उनका कलाम पहले क्यों नहीं देखा। हिंदोस्तानी ग़ज़ल में जो बहुत सार्थक और चुनौती भरी रचना हो रही है, उसका एक ज्वलंत उदाहरण दिलशाद हैं।
दरअसल ग़ाल का मतलब छंद मिलाना नहीं है। दो पंक्तियों में व्यंग्य करना भी नहीं। किसी प्रकार का विवरण देना भी नहीं है। ग़ज़ल भाषा के जिस स्तर को छूकर भावनाओं का संसार रचती है, वह कठिन कार्य दिलशाद की ग़ज़लें करती हैं।
दिलशाद बाह्य से अधिक आंतरिक संसार पसंद करते हैं और यही ग़ज़ल की एक ऐसी मंज़िल है, जहां पहुंचना हर ग़ज़ल लिखने वाले के लिए सरल नहीं है।
दिलशाद के संग्रह के प्रकाशन पर मैं उन्हें बधाई देता हूं और आशा करता हूं कि हिंदोस्तानी ग़ज़ल के संसार में यह एक महत्वपूर्ण क़दम माना जाएगा। -असग़र वजाहत
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