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    Aadha Khakhadee Aadha Dhaan

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    सिकुड़ते खेत और फैलते शहर के बीच किसानों की बेबसी हमारे समय का एक ऐसा सच है, जिसने गांवों की तस्वीर को बेतरह बदल दिया है। बदलाव और ठहराव की संयुक्त जमीन पर खड़े आज के गाँव प्रेमचन्द और रेणु के गाँवों से कई अर्थों में भिन्न हैं। बाज़ार की चकाचौंध और अस्मिता के प्रश्नों के बीच ग्रामीण जनजीवन खासा जटिल और विडंबनापूर्ण हो उठा है। पंकज मित्र की ये कहानियाँ ग्रामीण जीवन की नई छवियों को तो उद्घाटित करती ही हैं, आवारा पूँजी के सहारे फलती-फूलती मॉल और माल संस्कृति की दुरभिसंधियों को भी पहचानती हैं। इन कहानियों में स्थान और समय भी जीवंत किरदार की तरह उपस्थित होते हैं। इनसे गुजरना गाँव और कस्बों के नए जीवन यथार्थो की सच्ची गवाहियों का साक्षात्कार करना है।

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    Alexa! My Darling

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    प्रेम भी एक लोकतांत्रिक करवाई है alexa! इसलिए मैं समझता हूं कि अगर दो व्यक्तियों के बीच कहीं कोई प्रेम समाप्त होता है तो कहीं ना कहीं लोकतंत्र भी दम तोड़ता है। इसलिए जरूरी है कि अगर हम एक लोकतांत्रिक समाज में रहते हैं तो कम से कम संवाद जरूर करें। इस संवाद में ही प्रेम छिपा है।

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    Bandook tatha anya Kahaniyan

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    तारिक़ छतारी ने बहुत ज़्यादा कहानियाँ नहीं लिखी हैं, लेकिन जितनी लिखी हैं, उतनी ही उर्दू कथा-साहित्य में उनकी सशक्त पहचान के लिए पर्याप्त हैं। आम तौर पर उर्दू में लिखनेवाले मुस्लिम कथाकारों के पास हिंदू समाज से जुड़ी हुई कहानियाँ नहीं होतीं। क्योंकि अपने समुदाय से बाहर किसी अन्य समुदाय से उनका संपर्क और संवाद उतना नहीं होता। हिंदू-मुस्लिम के बीच धार्मिक मुद्दों को आधार बनाकर जिन कथाकारों ने कहानियाँ लिखी हैं, उनमें एक समुदाय का दूसरे समुदाय के बारे में अविश्वास, भरोसे में कमी, हिंसा, बहस और अंतत: अलगाव नज़र आता है। इसके उलट तारिक़ छतारी ने इस मानसिकता की जड़ को पकड़कर अपनी ‘बंदूक़’ कहानी में दिखाया कि नफ़रत के सौदागर तरह-तरह से समाज में नफ़रत फैलाते हैं, लेकिन समाज में जब एक-दूसरे से संवाद होता रहे, तो वह खाई ज़्यादा देर तक नहीं टिक सकती। हिंदू-मुस्लिम के बीच पैदा हुई खाई के बाद एक और हिजरत को तैयार शेख़ सलीमुद्दीन और उनके बेटे ग़ुलाम हैदर को जिस तरह हिंदू समुदाय के लोग रोक लेते हैं, वैसी कोई और कहानी हिंदी में नहीं लिखी गई। उर्दू में भी शायद ही ऐसी कोई कहानी हो।

    225.00
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    Bapu ke Saye Mein

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    “श्री वीरेन्द्र नारायण हर दृष्टि से नाटक लिखने के अधिकारी हैं। उनका ज्ञान केवल पुस्तकों तक ही सीमित नहीं है। व्यावहारिक दृष्टि से भी उनका अनुभव बहुत गहरा है। भारत सरकार के गीत और नाटक विभाग से उनका संबंध है। स्वयं उन्होंने अनेक जटिल नाटकों का निर्देशन किया है। विदेश में रहकर अनेक वर्षों तक उन्होंने इस कला का अध्ययन किया है। स्वयं उनके नाटक सफलतापूर्वक रंगमंच पर अभिनीत हो चुके हैं। अनेक नाटकों का गंभीर अध्ययन उन्होंने प्रस्तुत किया है। इस कला को गंभीरता से ग्रहण करने वाले कुछ इने-गिने व्यक्तियों में ही उनकी गिनती की जा सकती है। ऐसे व्यक्ति के द्वारा लिखे गए नाटक की उपयोगिता और सफलता स्वयंसिद्ध है।” –विष्णु प्रभाकर

    108.00
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    Chayanit Kahaniya : Anton Chekhav

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    चेख़व स्वयं डॉक्टर थे। अस्पतालों के भीतर के क्रियाकलापों से अनभिज्ञ नहीं थे। इस उपन्यासिका का मुख्य पात्र एंड्री एफिमिच भी डॉक्टर है, जो एक नए अस्पताल में कार्य-भार संभालता है। शुरुआती दिनों में वह महसूस करता है कि मरीज किस तरह की भयावह स्थिति में रहते हैं। हालांकि उसका मानना है कि उन्हें बदलने के लिए कुछ नहीं किया जा सकता है। पाठक मनोरोग वार्ड नंबर 6 के निवासियों से परिचित होता है। उनमें ग्रोमोव नामक एक रोगी है। यह उपन्यासिका डॉक्टर एंड्री एफिमिच और रोगी ग्रोमोव के दार्शनिक संघर्ष की पड़ताल करती है। रोगी ग्रोमोव हर तरफ व्याप्त अन्याय की निंदा करता है, जबकि डॉ. एंड्री एफिमिच अन्याय और अन्य बुराइयों की अनदेखी करने पर जोर देता है। यह माना गया कि उपन्यासिका में मानसिक वार्ड को रूस और अभिजात वर्ग के पागलपन के प्रतीक के रूप में दर्शाया गया था, जिन्होंने रूस की समस्याओं से निपटने के बजाय उन्हें नजरंदाज करने का विकल्प चुना।

    180.00
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    Chayanit Kahaniyan : Nikolay Vasilyevich Gogol

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    निकोलाई वसीलिविच गोगोल का जन्म 19 मार्च 1809 को यूक्रेन के पोल्टावा प्रान्त के सोरोकिंस्की कस्बे में हुआ था। यूक्रेन के इस हास्यकार, नाटककार और उपन्यासकार की रूसी भाषा में लिखी रचनाओं ने रूसी साहित्य की दिशा को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया। उसके उपन्यास ‘डेड सोल्स’ (मृत आत्माएँ-1842) और कहानी ‘द ओवरकोट’ (ओवरकोट-1842) को रूसी यथार्थवाद की 19वीं सदी की महान परंपरा की नींव माना जाता है। इन कहानियों से गोगोल की प्रौढ़ कलात्मकता का पूर्ण परिचय मिल जाता है। उसकी सबसे बड़ी विशेषता उसका सूक्ष्म व्यंग्य है जो पाठकों को हँसाता है, गुदगुदाता है और ग़मगीन बनाता है तथा साथ ही यह सोचने पर मजबूर करता है कि कहानियों में दर्शाए गए पात्र सर्वथा हास्यास्पद नहीं हैं, बल्कि परिस्थितियों ने इन्हें दयनीय बना दिया है। गोगोल की इसी विशेषता पर टिप्पणी करते हुए बेलिंस्की ने गोगोल के व्यंग्य को ‘आंसुओं के बीच हँसी’ कहा है।

    180.00
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    Chuninda Kahaniyan : Deepak Sharma

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    दीपक शर्मा की उपस्थिति हिंदी कथाजगत को समृद्ध करती है। जीवन का शायद ही कोई क्षेत्र हो जो दीपक शर्मा की कहानियों से छूटा हो। समाज के दलित, वंचित और उपेक्षित वर्ग का पक्ष, किसी शब्दाडम्बर के बिना शायद ही किसी ने इन जैसे प्रभावी रूप में प्रस्तुत किया हो। इनकी रचनाओं का परिवेश जितना व्यापक है, उतना ही प्रामाणिक भी। ऐसी प्रामाणिकता हिंदी में कहीं और नहीं दिखती है, और न ही वैसा विस्तार। दीपक शर्मा के पात्र, विशेषकर नारीपात्र आत्मविश्वासी और दृढ़ हैं। ऐसा नहीं कि वे विजेता ही हों, लेकिन वीर योद्धा अवश्य हैं। इस संग्रह की कहानियाँ मर्मस्पर्शी तो हैं ही साथ ही मार्मिक भी हैं। इनकी कहानियाँ पाठक को असहज करने की क्षमता रखती हैं। इस संग्रह की कहानियाँ अपनी जड़ों की तरफ लौटने का बार-बार आग्रह करती हैं और पाठकों को गहरे से झकझोरती हैं। इनकी कहानियों पर निर्मल वर्मा ने कहा था कि, ‘उनकी कहानियाँ विस्मित करती हैं।’

    200.00
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    Chuninda Kahaniyan : Rajendra Laharia

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    ‘चुनिन्दा कहानियाँ’ शृंखला की इस पुस्तक में कथाकार राजेन्द्र लहरिया की पाँच वे लम्बी कहानियाँ संचयित हैं जो ‘हंस’, ‘नया ज्ञानोदय’, ‘अक्सर’, ‘वनमाली कथा’ और ‘पहल’ जैसी हिन्दी की महत्त्वपूर्ण पत्रिकाओं में प्रकाशित हो कर, सुधी पाठकों की सराहना व चर्चा का केन्द्र बनी रही थीं। राजेन्द्र लहरिया अपनी कहानियों की समय-समाज-सापेक्ष विषयवस्तु के लिए तो सुपरिचित हैं ही; साथ ही कथावस्तु को कहानी में रूपांतरित करने के अपने विशिष्ट क्राफ़्ट के लिए भी जाने जाते हैं। उनका कहना है, ‘किसी कहानी का कंटेंट तो प्राथमिक महत्त्व रखता ही है; अलबत्ता मैं कहानी के क्राफ़्ट को कम महत्त्व नहीं देता हूँ। यदि किसी कंटेंट (कथावस्तु) को जैसे-तैसे लिख भर दिया जाय, तो ज़रूरी नहीं कि वह कहानी का दर्जा हासिल कर पाये! कहानी तभी बनती है जब उसकी कथावस्तु को एक ख़ास क्राफ़्ट के मार्फ़त प्रस्तुत किया जाय!’ इस संचयन की पाँचों कहानियाँ उनके उपर्युक्त कथन का रचनात्मक सबूत हैं।

    225.00
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    House Husband on Duty

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    जैसे हाउस वाइफ का काम कोई नौकरी नहीं है, ठीक वैसे ही हाउस हसबैंड होना या बनना कोई करियर नहीं है। बावजूद इसके सुबह से लेकर शाम तक कोई न कोई काम लगा रहता है। कोई नोटिस करे या न करे लेकिन खुद और टांगों को पता रहता है वह ड्यूटी पर हैं। यह किताब हाउस हसबैंड के संस्मरणों का पुलिंदा है।

    239.00
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    Jali Coupon

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    लेव तोलस्तोय ने कुछ लघु उपन्यासाें की भी रचना की थी। उन रचनाओं के हिन्दी अनुवाद उपलब्ध नहीं थे। हिंदी पाठकों के लिए विदेशी साहित्य के अध्येता विवेक दुबे ने यह महति कार्य किया है। इस रचना को प्रस्तुत करते हुए हमें बहुत खुशी हो रही है।

    180.00
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    Lakeer tatha anya Kahaniyan

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    जिस सियासत का काम समाज को बेहतरी के रास्ते पर ले जाना था, उस सियासत का मकसद जब ख़ुद की बेहतरी तक सिमट जाए और अपनी बेहतरी के लिए वह समाज के भीतर तरह-तरह की ‘लकीर’ खींचने से भी गुरेा न करे, तो इससे आम लोगों को भले बहुत अधिक बेचैनी न हो, लेकिन अदीबों को तो होती है! चूँकि साहित्य हमेशा सुंदर का स्वप्न देखता है और अपने देशकाल और समाज से लेकर पूरी दुनिया को सुंदर देखने का हामी होता है, इसलिए सबसे यादा बेचैनी कलाकारों, अदीबों और इंसानियतपसंद लोगों को होती है. उर्दू के प्रक्चयात कथाकार तारिक़ छतारी अपनी बेहद संवेदनशील और सतर्क भाषा में लकीर की सियासत से बन रहे नये तरह के समाज में घटित होनेवाली लोमहर्षक घटना से पाठकों को झंझोड़ देते हैं. जिस देश में अनेक मुस्लिम कवियों ने भी भगवान कृष्ण को अपनी कविता और कहानी का विषय बनाया, जिस देश के लोग कण-कण में ईश्वर की उपस्थिति की बात करते हैं, उस देश में लकीर खिंच जाने के कारण कृष्ण बने के एक मासूम बालक को भीड़ सिर्फ़ इसलिए मार देती है कि उसका संबंध किसी अन्य समुदाय से है! तारिक़ छतारी समाज के इसी बदलते हुए स्वरूप को अपनी रचना का आधार बनाते हैं और अपने समुदाय से बाहर के जीवन की भी उतनी ही प्रामाणिक कहानी लिखते हैं, जितने प्रामाणिक वर्णन अपने समुदाय का करते हैं. यह प्रवृत्ति आज विरल है और विरल प्रवृत्तियों को ही रचने वाले तारिक़ साहब उर्दू के विरल कथाकार हैं!

    225.00