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Chuninda Kahaniyan : Rajendra Laharia

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‘चुनिन्दा कहानियाँ’ शृंखला की इस पुस्तक में कथाकार राजेन्द्र लहरिया की पाँच वे लम्बी कहानियाँ संचयित हैं जो ‘हंस’, ‘नया ज्ञानोदय’, ‘अक्सर’, ‘वनमाली कथा’ और ‘पहल’ जैसी हिन्दी की महत्त्वपूर्ण पत्रिकाओं में प्रकाशित हो कर, सुधी पाठकों की सराहना व चर्चा का केन्द्र बनी रही थीं। राजेन्द्र लहरिया अपनी कहानियों की समय-समाज-सापेक्ष विषयवस्तु के लिए तो सुपरिचित हैं ही; साथ ही कथावस्तु को कहानी में रूपांतरित करने के अपने विशिष्ट क्राफ़्ट के लिए भी जाने जाते हैं। उनका कहना है, ‘किसी कहानी का कंटेंट तो प्राथमिक महत्त्व रखता ही है; अलबत्ता मैं कहानी के क्राफ़्ट को कम महत्त्व नहीं देता हूँ। यदि किसी कंटेंट (कथावस्तु) को जैसे-तैसे लिख भर दिया जाय, तो ज़रूरी नहीं कि वह कहानी का दर्जा हासिल कर पाये! कहानी तभी बनती है जब उसकी कथावस्तु को एक ख़ास क्राफ़्ट के मार्फ़त प्रस्तुत किया जाय!’ इस संचयन की पाँचों कहानियाँ उनके उपर्युक्त कथन का रचनात्मक सबूत हैं।

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Description

‘चुनिन्दा कहानियाँ’ शृंखला की इस पुस्तक में कथाकार राजेन्द्र लहरिया की पाँच वे लम्बी कहानियाँ संचयित हैं जो ‘हंस’, ‘नया ज्ञानोदय’, ‘अक्सर’, ‘वनमाली कथा’ और ‘पहल’ जैसी हिन्दी की महत्त्वपूर्ण पत्रिकाओं में प्रकाशित हो कर, सुधी पाठकों की सराहना व चर्चा का केन्द्र बनी रही थीं। राजेन्द्र लहरिया अपनी कहानियों की समय-समाज-सापेक्ष विषयवस्तु के लिए तो सुपरिचित हैं ही; साथ ही कथावस्तु को कहानी में रूपांतरित करने के अपने विशिष्ट क्राफ़्ट के लिए भी जाने जाते हैं। उनका कहना है, ‘किसी कहानी का कंटेंट तो प्राथमिक महत्त्व रखता ही है; अलबत्ता मैं कहानी के क्राफ़्ट को कम महत्त्व नहीं देता हूँ। यदि किसी कंटेंट (कथावस्तु) को जैसे-तैसे लिख भर दिया जाय, तो ज़रूरी नहीं कि वह कहानी का दर्जा हासिल कर पाये! कहानी तभी बनती है जब उसकी कथावस्तु को एक ख़ास क्राफ़्ट के मार्फ़त प्रस्तुत किया जाय!’ इस संचयन की पाँचों कहानियाँ उनके उपर्युक्त कथन का रचनात्मक सबूत हैं।

Additional information

Weight 0.2 kg
Dimensions 21 × 14 × 1 cm
book-author

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