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    Ward No. 6

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    चेख़व स्वयं डॉक्टर थे। अस्पतालों के भीतर के क्रियाकलापों से अनभिज्ञ नहीं थे। इस उपन्यासिका का मुख्य पात्र एंड्री एफिमिच भी डॉक्टर है, जो एक नए अस्पताल में कार्य-भार संभालता है। शुरुआती दिनों में वह महसूस करता है कि मरीज किस तरह की भयावह स्थिति में रहते हैं। हालांकि उसका मानना है कि उन्हें बदलने के लिए कुछ नहीं किया जा सकता है। पाठक मनोरोग वार्ड नंबर 6 के निवासियों से परिचित होता है। उनमें ग्रोमोव नामक एक रोगी है। यह उपन्यासिका डॉक्टर एंड्री एफिमिच और रोगी ग्रोमोव के दार्शनिक संघर्ष की पड़ताल करती है। रोगी ग्रोमोव हर तरफ व्याप्त अन्याय की निंदा करता है, जबकि डॉ. एंड्री एफिमिच अन्याय और अन्य बुराइयों की अनदेखी करने पर जोर देता है। यह माना गया कि उपन्यासिका में मानसिक वार्ड को रूस और अभिजात वर्ग के पागलपन के प्रतीक के रूप में दर्शाया गया था, जिन्होंने रूस की समस्याओं से निपटने के बजाय उन्हें नजरंदाज करने का विकल्प चुना।

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    Sahayata Tatha Anya Kahaniyan

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    चेक साहित्य का नाम सुनते ही पिछली सदी के जिन चेक लेखकों का ध्यान आता है, उनमें कारेल चापेक, जोसेफ श्कवोरेस्की, ब्लादीमीर पारेल, ईवान क्लीमा, लुदवीक वाकुलिक, ओता पावेल, वॉस्लाव हावेल, ईरी ग्रुसा, मिरोस्लाव होबुल, बोहुमिल हराबल, यान ओत्चेनाशेक, यारोस्लाव हासेक, अर्नोश्त लुस्तिग, यारोस्लाव पुतीक, लुदवीक अश्केनात्शी, ईरी वोल्कर, जुलियस यूचिक, यारोस्लाव साइफर्त, फ्रान्तिशेक राखलीक, फ्रान्तिशेक पिलार आदि प्रमुा हैं। इनका कालखंड लगभग विश्वयुद्ध के आस-पास का रहा है। दुर्भाग्यवश हमारा यूरोप के केन्द्रीय और पूर्वी देशों के साहित्य से परिचय बहुत सीमित रहा है। अँग्रेजी के माध्यम से यूरोप के साहित्य की जो जानकारी हमें मिली वह अपर्याप्त है। प्रस्तुत कहानी-संग्रह का यह एक प्रयास है कि विश्वयुद्ध से जुड़ी चेक कहानियों से गुजरते हुए वहाँ की तत्कालीन परिस्थितियों का ज्ञान हो और वहाँ की सामाजिक-सांस्कृतिक स्थितियों से परिचय भी।

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    Paradime

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    “पैराडाइम कथानक के रूप में नई है और इसमें चीजों को प्रस्तुत करने की शैली भी नई है। मैंने इस तरह की और कौन-सी कहानी पढ़ी है, मुझे याद नहीं। इसकी स्टोरी लाईन अच्छी है। कहानी के बीच-बीच में हेडिंग डालना अच्छा है। इसमें पैराडाइम का अर्थ जिस तरह से समझाया गया है, वह अभी तक जो पारंपरिक कहानियां हैं, उससे अलग शैली में है। कहानी में फ़्लो (बहाव) है। पढ़ने में फ़्लो बहाव है। इसका अन्त भी अच्छा है। कोई ऐसा अन्त नहीं कि हम किसी नतीजे पर पहुंच जायें। कथानक और शैली के लिहाजा से यह एक नई शुरुआत है। कहानी में कई प्रकार के प्रयोग किये गये हैं। प्रयोगों में नवीनता है। पारंपरिक ढंग से कहानियां जैसे लिखी जाती हैं, पैराडाइम वैसी नहीं है। बहुत सारी चीजों जोड़ी गई हैं, जो अच्छी बात है।” -शिवमूर्ति, वरिष्ठ कथाकार

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