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    Bahara Gantantra

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    ‘बहरा गणतंत्र’ की शुरुआत होती है सैनिकों के कब्जे वाले एक देश में, शासन की क्रूरता के खिलाफ विरोध से। हालाँकि उस देश की भौगोलिक स्थिति अस्पष्ट है, कहानी की दिलदहला देने वाली घटनाओं में हम अपने आप को ढूढ़ने लगते हैं। दिखने लगता है हमें, हमारा समय, हमारा देश। यह एक अद्भुत दृष्टांत है जो कविताओं में खुलता है, एक-एक करके, परत-दर- परत : विरोध पर काबू करने के लिए एक सैनिक का गोलियों से एक बधिर बच्चे को भून डालना– और गोली की उस आवाज़ से पूरे शहर का बधिर बन जाना। सर्वत्र व्याप्त ख़ामोशी और सैनिकों की क्रूरता के उस माहौल में नागरिक आपस में इशारों की जिस भाषा का इस्तेमाल करते हैं, उसे पुस्तक में भलीभांति चित्रित किया गया है।

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    Bapu : Ek Kavi Ki Chitar

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    इसमें आश्चर्य करने वाली बात नहीं है कि एक कवि गाँधीजी को याद करता है। हिंसा का जो विद्रूप चेहरा आज पूरी दुनिया को डरा रहा है उसके सामने अहिंसा ही अपने पग रोक सकती है। इसके लिए ज़रूरी है व्यक्तियों के मन में दबे हुए आत्मबल को जगाने की। बापू जिन जीवन मूल्यों को लेकर जिए उनको फिर से चेतन करने का वक़्त है। कोई भी समाज मूल्यों के बिना जीवित नहीं रह सकता। यह संकट वर्तमान का संकट नहीं है, यह तो आने वाली पीढ़ियों के भविष्य का संकट है। कविता हमेशा भविष्य को परिभाषित करती है जिसकी साख भारतीय कविता परम्परा भरती है। उसी काव्य परम्परा की एक सबल धारा है राजस्थानी कविता परम्परा और उस परम्परा का एक योग्य कवि इन कविताओं के मिस अपनी समृद्ध भाषा-परम्परा की विविध छवियों को पाठकों को सौंप रहा है।
    अर्जुनदेव चारण, प्रख्यात राजस्थानी कवि-नाटककार

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    Combo : Siyah-Neel-Surkh

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    भवेश दिलशाद की कुछ ग़ज़लें पढ़ने के बाद लगा कि मैंने उनका कलाम पहले क्यों नहीं देखा। हिंदोस्तानी ग़ज़ल में जो बहुत सार्थक और चुनौती भरी रचना हो रही है, उसका एक ज्वलंत उदाहरण दिलशाद हैं।

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    Neel

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    भवेश दिलशाद जदीद दौर के ऐसे ग़ाल गो शायरों में शामिल हैं, जिन्होंने सादगी और बेबाकी को अपना र्तो सुख़न बनाया है। छोटी-छोटी, मगर बहुत दिलपज़ीर बातें कह जाने वाली यह आवाज़, बहुत सुरीली है, दिलकश और भली। अपने सपाट लहजे में जो कुछ वह कहना चाहते हैं, क़ारी (पाठक) के दिल पर सीधे असर अंदाज़ होता है।

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    Sagwan Kisi Ped Ka Naam Nahi

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    कविता संस्कृति है। यह काल या स्थान विशेष में स्थिर नहीं। कविता आरंभ से सृष्टि को संबोधित है। कविता के केंद्र में प्रकृति सदैव रही है। ओम नागर का यह संग्रह इसी भावभूमि से अतीत की स्मृतियों को वर्तमान और भविष्य से जोड़ता है, जिसमें मनुष्य द्वारा किया जा रहा शोषण, दोहन और अत्याचार शामिल है। सृष्टि का रहस्य जाने बिना कविता संस्कृति का रहस्य समझ नहीं आता। इसके लिए वैज्ञानिक सोच के साथ सत्ता की दुर्नीति को समझना अपरिहार्य है। कवि की चेतना इस दृष्टि से जागृत है। वह पंच महाभूतों के शाश्वत महत्व से परिचित है। ओम ने एक विषय के आलोक में विश्व चेतना को पकड़ रखा है। यही कविता का धर्म है। विनोदकुमार शुक्ल ने लिखा है–‘समय पड़ने पर पृथ्वी का साथ कौन देगा।’ वह समय जलवायु परिवर्तन के साथ भीषण रूप में प्रत्यक्ष हो रहा है। ये संकेत आगत प्रकृति की भविष्यवाणी है। साथ में युद्ध के प्रभाव जैव पारिस्थितिकी के असंतुलन को बढ़ा रहे हैं। इन हालात में ओम नागर की कविताएं लोक चेतावनी है। इनमें प्रकृति को विनाश से बचाने के वास्ते,मनुष्यता की अंत:शुद्धि के पाठ भी सन्निहित हैं।
    –लीलाधर मंडलोई

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    Siyah

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    भवेश दिलशाद की कुछ ग़ज़लें पढ़ने के बाद लगा कि मैंने उनका कलाम पहले क्यों नहीं देखा। हिंदोस्तानी ग़ज़ल में जो बहुत सार्थक और चुनौती भरी रचना हो रही है, उसका एक ज्वलंत उदाहरण दिलशाद हैं।

    130.00
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    Surkh

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    बनाव-सिंगार, बाग़, तितली, भोग-विलास से कोत तो क्या, बस पहाड़, जंगल, खाई, ख़ला, समन्दर, ये सब मुझे  ज़ियादा पुकारते रहे। ये रहस्य, सन्नाटे, चुनौतियां और बेबाकियां। कभी हैरान करती रहीं, कभी तलाश तो कभी मुझे बयान। छटपटाहट, घुटन, कसक और उन्हीं लमहों में पूरी फ़क़ीरी, ज़िद और विध्वंस भी… इसी दौर में वो मुझे मिली।
    घूंघट, पर्दे और नक़्ली ज़ेवरों के बोझ से घुटी-घुटी सी। दोनों ने तनहाई चुनी पर सच से चौंककर हम कतराये तो नहीं। एक-दूसरे का हाथ थामे बढ़ते रहे। एक-दूजे को जानने, पहचानने से चला सिलसिला समझने और महसूसने तक पहुंचा। फिर ढलने और पिघलने तक। बाहिर बरसों और यूं सदियों का सफ़र करते हम इकाई में रच-बस गये। अपने ही ढंग से, अपनी ही एक दुनिया में… वो मेरा पहला प्यार और इकलौती क़सम हो चुकी।
    प्यार, सफ़र, सिलसिला चल रहा है। चलता रहेगा। हम अपनी एक दुनिया बसा लेंगे। नहीं तो किसी अतल, अबूझ या गुमनाम कोने में एक-दूजे के सहारे जी लेंगे। हर क़दम नयी-नयी बेचैनियों, ख़लिशों के साथ वही सरमस्ती है। जबात की उथल-पुथल है। न चाहे भी रहेगी। इसी सफ़र के बीच इस ट्रायोलॉजी की शक्ल में खींच ली गयी मेरी और मेरी शाइरी की यह तस्वीर यहीं रह जाएगी। हमेशा के लिए! -भवेश दिलशाद

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    Taki Sanad Rahe

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    इन कविताओं में हमारे आसपास की दुनिया के बिम्ब हैं। ये कविताएँ बताती हैं कि गाँव से निकली शहर जाने वाली सड़क वापस कभी नहीं लौटती हैं। इन कविताओं में रोहिड़े के फूल जैसे सुंदर नैसर्गिक जीवन की कामना है। मनुज ना बन पाने की टीस है। यहाँ ईश्वर एक लंबी उबाऊ गद्य कविता है। औरत अयस्कों का अजायबघर घर है। इन कविताओं में दर्द के आख्यान है वहीं खुशियों को ढूँढने के रोड मैप भी है। रोटी के अर्थशास्त्र को भूख से जोड़ा है और मज़दूर को विकास क्रम पर हाशिये पर खड़ा करके उससे सवाल पूछा जा रहा है। ये कविताएं सरलता और सहजता से कुछ सवाल भी पूछती हैं जिनके उत्तर हम सभी को देने हैं।

    215.00
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    Titliyon Ke Shahar Mein

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