Description
भारत सहित पूरे विश्व में कोरोना महामारी से हाहाकार मचा हुआ था। इस महामारी से बचाव हेतु सरकार द्वारा तालाबन्दी की घोषणा की गई। घोषणा होते ही मालिकों ने मजदूरों को कारखानों से निकाल दिया। इन मजदूरों का भाग्यदोष प्रबल था। वे विपत्तिग्रस्त थे। वे दुखी थे चुनावों में व्यस्त संवेदनहीन सत्ता सामंतों की उपेक्षा से जिन्होंने उन्हें उनके घरों तक पहुँचाने का कोई बन्दोबस्त नहीं किया। वे पीडि़त थे न्यायपालिका की उपेक्षा से जिसने उनके पक्ष में कोई त्वरित फैसला नहीं सुनाया। वे त्रस्त थे पाशविक प्रवृति वाले कारखाना मालिकों के संकुचित और कपटपूर्ण व्यवहार से जिन्होंने उनका कमाया धन देने से मना कर दिया। वे आहत थे प्रतिष्ठित कहे जाने वाले लोगों की कठोर मुद्रा से जो इन लाचार मजदूरों को घृणा से देखते रहे, इनकी कोई मदद नहीं की। वे शोकार्षित थे उन अस्पतालों की लचर व्यवस्था से जहाँ उन्हें चिकित्सा सुविधा नहीं मिली। इस दीनावस्था में निर्बल मृतप्राय प्रवासी मजदूर दुर्गम रास्तों को पार करते हुए अपने घरों की ओर चलते रहे और आँसू बहाते रहे।
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