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    Bapu ke Saye Mein

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    “श्री वीरेन्द्र नारायण हर दृष्टि से नाटक लिखने के अधिकारी हैं। उनका ज्ञान केवल पुस्तकों तक ही सीमित नहीं है। व्यावहारिक दृष्टि से भी उनका अनुभव बहुत गहरा है। भारत सरकार के गीत और नाटक विभाग से उनका संबंध है। स्वयं उन्होंने अनेक जटिल नाटकों का निर्देशन किया है। विदेश में रहकर अनेक वर्षों तक उन्होंने इस कला का अध्ययन किया है। स्वयं उनके नाटक सफलतापूर्वक रंगमंच पर अभिनीत हो चुके हैं। अनेक नाटकों का गंभीर अध्ययन उन्होंने प्रस्तुत किया है। इस कला को गंभीरता से ग्रहण करने वाले कुछ इने-गिने व्यक्तियों में ही उनकी गिनती की जा सकती है। ऐसे व्यक्ति के द्वारा लिखे गए नाटक की उपयोगिता और सफलता स्वयंसिद्ध है।” –विष्णु प्रभाकर

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    Bijji Ka Kathalok

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    लोकजीवन से गहरी संसक्ति और लोकमानस की वैज्ञानिक समझ रखनेवाले सर्वोपरि कथाकारों में बिज्जी का नाम बेहिचक लिया जा सकता है। उनकी कहानियों को पढ़ते हुए निरंतर यह महसूस होता है कि वे स्वयं लोक के अभिन्न अंग भी हैं और द्रष्टा भी। यही वजह है कि अपने नितांत निजी अनुभवों को कथा में पिरोते हुए भी उनमें भावुकता का लेशमात्र भी दिखाई नहीं देता। यह बिज्जी की रचनाधर्मिता की ख़ासियत है। इसी के बलबूते वे अपनी रचनाओं में ऐसा लोक रच पाए जो वास्तविक भी है और उनका कल्पनालोक भी है। सामंती परिवेश के भीतर रहनेवाले पात्रों में प्रगतिशील विवेक और रूढ़ियों से टकराने की क्षमता इसी से उपजी है। राजस्थानी लोकमानस की मुकमल पहचान बिज्जी के कथालोक में डूबकर ही की जा सकती है। किसी रचनाकार के लिए किंवदंती में बदल जाना यदि सबसे बड़ी उपलब्धि मान ली जाए तो बिज्जी इस उपलब्धि को अपने जीवनकाल में ही हासिल कर चुके थे। राजधानियों की चमक-दमक से कोसों दूर ग्रामांचल में रहकर साहित्य साधना करते हुए नोबेल नोमिनेशन तक की यात्रा ने इस किंवदंती को संभव बनाया।

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    Meet

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    ‘मीत’ जितना यह शब्द सुंदर लगता है उतना ही इसके मायने भी। रिश्ता चाहे कोई भी हो उसका एक बड़ा-सा हिस्सा दोस्ती का होना चाहिए क्योंकि इसमें प्रेम, विश्वास और एक विशेष प्रकार का अपनत्व विद्यमान रहता है। इसीलिए यह रिश्ता व्यक्ति को टूटने नहीं देता। इस अपनत्व का खून से कोई नाता नहीं है। इसका नाता हृदय से है। यह माना जाता है कि अपना बनाने से हर कोई अपना बन जाता है। आज की इस दौड़ती-भागती दुनिया में इसकी ज़रूरत सबसे ज्यादा है। यह हर रिश्ते को पानी देता है, उसे मुरझाने नहीं देता। इस संग्रह की कविताओं में प्रेम, घर-परिवार, रिश्ते, प्रकृति और भविष्य की आशावादी आकांक्षाएँ शामिल हैं। यह कविताएँ यथार्थवादी भावभूमि की सैर कराती हैं। जीवन के छोटे-छोटे अनछूए पहलूओं को माध्यम बनाकर रची गयी यह कविताएँ आपको खुद से परिचित कराने का माध्यम बनेंगी। एक स्वागत योग्य संग्रह जिसे आपके स्नेह की आवश्यकता है।

    120.00
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    Tum Zindagi Ka Namak Ho

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    तुम्हारी स्मृतियाँ इतनी गहरी हैं, जैसे नये-नकोर मकान पर कोई बच्चा ईंट के टुकडे से गुस्से में अपना नाम लिख दे। जैसे अलभोर ने रचा है धुंधलको को। रात रचती है सुबह की रोशनी। हर प्रेम रचता है अथवा यूँ कहेंं रचेगा आँसू। आज मेरे यार की शादी है, बैंड में नाच रहे होते हैं कुछ लोग। मगर कहीं दूर सूड़क रही होती है कोई नाक को। आँसू, जो दजला-फरात बनकर उसके गले में भर आए हैं। रोती है बाथरूम में जाकर जार-जार। -इसी किताब से

    72.00
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    Thaka Suraj Chamakta hai

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    लंबी कविता आधुनिक साहित्य का वैकल्पिक खंडकाव्य है। इसकी शुरुआत क्यों हुई, यह विचारणीय मुद्दा है। ध्यान खींचने योग्य तथ्य है, कि यह उपविधा के रुप में महाकाव्यों के लगभग अवसान के पश्चात प्रकट हुई। 20वीं सदी में बृहद उपन्यासों को जीवन का महाकाव्यात्मक आयान कहा गया, जो कि तर्कपूर्ण भी है। सही अर्थों में उपन्यास ही महाकाव्य के विकल्प सिद्ध होते हैं, अन्य कोई भी विधा नहीं। इस नजरिए से ल़ंबी कविता की अपनी अलग विशिष्टता, पहचान और  प्रकृति है। लंबी कविता कविता का ही बहुदिशात्मक विस्तार है। वर्तमान की कुरुपताओं को मात देकर भविष्य के लिए प्रशस्त जनपथ का निर्माण करना लंबी कविता का मूलभूत दायित्व है। यह संग्रह निश्‍चय ही अपनी धारा प्रशस्त करेगा।

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    Paradime

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    “पैराडाइम कथानक के रूप में नई है और इसमें चीजों को प्रस्तुत करने की शैली भी नई है। मैंने इस तरह की और कौन-सी कहानी पढ़ी है, मुझे याद नहीं। इसकी स्टोरी लाईन अच्छी है। कहानी के बीच-बीच में हेडिंग डालना अच्छा है। इसमें पैराडाइम का अर्थ जिस तरह से समझाया गया है, वह अभी तक जो पारंपरिक कहानियां हैं, उससे अलग शैली में है। कहानी में फ़्लो (बहाव) है। पढ़ने में फ़्लो बहाव है। इसका अन्त भी अच्छा है। कोई ऐसा अन्त नहीं कि हम किसी नतीजे पर पहुंच जायें। कथानक और शैली के लिहाजा से यह एक नई शुरुआत है। कहानी में कई प्रकार के प्रयोग किये गये हैं। प्रयोगों में नवीनता है। पारंपरिक ढंग से कहानियां जैसे लिखी जाती हैं, पैराडाइम वैसी नहीं है। बहुत सारी चीजों जोड़ी गई हैं, जो अच्छी बात है।” -शिवमूर्ति, वरिष्ठ कथाकार

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    Bharat 1857 se 1957 Itihas par ek Drishti

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    पुस्तक का शीर्षक भले ही 1857 से 1957 तक के भारत में सीमित रखा गया हो परंतु 1857 से पूर्व के एक शतक तक की पृष्ठभूमि से ही इसका प्रारंभ किया गया है। पुस्तक के अंतिम अध्याय में भी 1957 के बाद के भारत का भविष्य क्या होगा तथा डॉक्टर  आंबेडकर के सपने के अनुसार क्या हम इस देश के भविष्य को संवार  पाएंगे? यह प्रश्‍न लेखक ने पाठकों के समुख उपस्थित किया है। लेखक का अपने विषय को 1957 तक सीमित रखने के पीछे शायद यही भाव रहा हो कि पंडित नेहरू की सत्ता प्राप्ति के लिए अपनाई गई रणनीति की जानकारी पाठकों तक पहुंचे। लेखक की यह पहली ही पुस्तक है जो पठनीय हुई और यह उनकी साहित्य-यात्रा के लिए एक उत्साहवर्धक बात है।

    150.00
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    Czech Sahitya Bhasha v Sanskritik Pariprekshya

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    Sint magnam sed optio est ut. Rerum facilis eos voluptatum non. Eius asperiores nulla amet.

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    Kitabon Mein Stree

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    Officia quidem necessitatibus qui. Sit aut et laborum ut a eum. Omnis laboriosam minima alias saepe numquam.

    120.00
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    Mujhe Patang ho jana hai

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    Consequatur consequuntur doloremque facere voluptatem explicabo et molestiae. Qui esse consequuntur magni.

    120.00
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    Hawa ki Nadi Mein

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    हिन्दी के वरिष्ठ कवि उपेन्द्र कुमार वस्तुतः अधिकार, प्यार, असंगत व्यवस्था को धिक्कार, जनजीवन के परिष्कार, चेतना के उभार और उपादेय परम्परा के स्वीकार के कवि हैं। ये सभी समुज्ज्वल भाव उनकी कविताओं में हर स्थिति में रेखांकित होते हैं। उनकी कविताओं में चिड़िया, पहाड़, पर्वत, नदी, रिश्ते, लिवास, नाम, पहचान, घर, अन्धकार-विरोध, व्यवस्था-विरोध, संचार…जैसे प्रसंगों को पूरी अर्थवत्ता के साथ जगह मिलती है। इनके मूलार्थ आहत करनेवालों पर वे आँखें तरेरते हैं। उनके जनसरोकार और उनकी काव्य-दृष्टि विस्तृत विवेचन की हकदार है।

    156.00
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    Hath Tatha Anya Kavita

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    Cupiditate voluptatem earum iure nam laudantium. Saepe dolorem ea occaecati eius.

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