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    Samkaleen Laghukatha ka Samiksha-Saundarya

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    लघुकथा लेखन को आसान सी विधा मानकर बहुत लोग इस विधा के लेखन की ओर मुड़े और जानेअनजाने अपनी अधकचरी बौद्धिकता और अज्ञान के बूते इस विधा का अहित करते चले गए। इन बहुत से लोगों में वे भी थे जो खालिस पाठक थे और लेखक बनना चाहते थे। जो कुछ बनना चाहते हैं उन्हें कोई नहीं रोक सकता। वे बन गए। वे बिना पढ़े लेखक बन गए। उन्होंने बस उसी तरह की लघुकथाएं पढ़ी थीं और वे उसी तरह के लघुकथा लेखक बन गए। यह विराट स्तर पर धर्म परिवर्तन से भी अधिक संगीन मामला था जिसने साहित्य को बहुत बड़े पैमाने पर चोट पहुंचाई लेकिन इसकी कोई चर्चा नहीं हुई। इस पुस्तक में लघु कथा के सौन्दर्यशास्त्र पर चर्चा की गई है और इस विधा की महत्ता को स्थापित करने का प्रयास ही प्रधान है।

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    Kitabon Mein Stree

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    Officia quidem necessitatibus qui. Sit aut et laborum ut a eum. Omnis laboriosam minima alias saepe numquam.

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    Renu Prasang

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    Bacha Rahe Sparsh

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    ‘पुस्तकनामा’ से प्रकाशित यह संचयन कई मायनों में विशिष्ट है। इसमें बहुत वरिष्ठ से लेकर युवा तक 25 प्रखर स्त्री  कवियों ने अपनी श्रद्धांजलियाँ लिखी हैं। ये संस्मरण कुछ वहाँ से नहीं लिखे गए हैं जहाँ, दिनों-महीनों का समय लेकर लेखक तमाम काट-छाँट कर अपने आपको पॉलिटिकली करेक्ट रखते हुए, कलात्मकता की रेह से माँज कर एक संस्मरण लिखता है। ये एक प्रिय कवि के न रहने के अकस्मात आघात के विक्षोभ से उठी तरंगें हैं जिन्होंने सपूर्ण हिंदी समाज को हिला दिया था। ये शोक व स्मृति के ऐसे आवेगपूर्ण अनछुए उद्‌गार हैं कि बेहद महत्वपूर्ण पहला संस्मरण मंगलेश जी के अवसान के छठें ही दिन हाथ में आ गया था। और यही तात्कालिकता इसका सौंदर्य है।

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