केन्द्र में कहानी राकेश बिहारी के ऐसे निबंधों का संग्रह है जो कहानी का तात्विक या दार्शनिक विवेचन नहीं करते बल्कि कहानी के कथ्य का सामाजिक संदर्भों में विश्लेषण करते हैं। पिछले बीस वर्षों की कहानियों का यह लेखा-जोखा बेहद पठनीय और गहरी अंतर्दृष्टि से कहानी कला की सार्थकता का अनुसंधान करता है। राकेश बिहारी ने जहां स्त्री अस्मिता की कहानियों का विस्तार से विश्लेषण किया है वहीं कहानियों में आये बुजुर्ग पात्रों को भी आत्मीय संवेदना से पकडऩे की कोशिश की है। कहने की जरूरत नहीं है कि ये अलग-अलग निबंध पिछले पन्द्रह वर्षों की कहानियों के बिखरे इतिहास को समेटने की कोशिश हैं। क्या ही अच्छा होता कि अगर नई कहानी या जनवादी कहानी के साथ इनकी तुलना और अलगाव के तत्वों पर भी थोड़ी बातचीत होती। तब यह संग्रह ज्यादा सम्पूर्ण होता। फिर भी अपने वर्तमान रूप में राकेश बिहारी के ये निबंध उनकी बौद्धिक सजगता और विश्लेषण की गहरी क्षमता को बेहद रोचक ढंग से हमारे सामने रखते हैं। इन्हें पढऩा कहानियों में आए विविध पात्रों, स्थितियों और समस्याओं से रूबरू होना है। -राजेन्द्र यादव