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Combo : Siyah-Neel-Surkh
0भवेश दिलशाद की कुछ ग़ज़लें पढ़ने के बाद लगा कि मैंने उनका कलाम पहले क्यों नहीं देखा। हिंदोस्तानी ग़ज़ल में जो बहुत सार्थक और चुनौती भरी रचना हो रही है, उसका एक ज्वलंत उदाहरण दिलशाद हैं।
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Neel
0भवेश दिलशाद जदीद दौर के ऐसे ग़ाल गो शायरों में शामिल हैं, जिन्होंने सादगी और बेबाकी को अपना र्तो सुख़न बनाया है। छोटी-छोटी, मगर बहुत दिलपज़ीर बातें कह जाने वाली यह आवाज़, बहुत सुरीली है, दिलकश और भली। अपने सपाट लहजे में जो कुछ वह कहना चाहते हैं, क़ारी (पाठक) के दिल पर सीधे असर अंदाज़ होता है।
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Siyah
0भवेश दिलशाद की कुछ ग़ज़लें पढ़ने के बाद लगा कि मैंने उनका कलाम पहले क्यों नहीं देखा। हिंदोस्तानी ग़ज़ल में जो बहुत सार्थक और चुनौती भरी रचना हो रही है, उसका एक ज्वलंत उदाहरण दिलशाद हैं।
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Surkh
0बनाव-सिंगार, बाग़, तितली, भोग-विलास से कोत तो क्या, बस पहाड़, जंगल, खाई, ख़ला, समन्दर, ये सब मुझे ज़ियादा पुकारते रहे। ये रहस्य, सन्नाटे, चुनौतियां और बेबाकियां। कभी हैरान करती रहीं, कभी तलाश तो कभी मुझे बयान। छटपटाहट, घुटन, कसक और उन्हीं लमहों में पूरी फ़क़ीरी, ज़िद और विध्वंस भी… इसी दौर में वो मुझे मिली।
घूंघट, पर्दे और नक़्ली ज़ेवरों के बोझ से घुटी-घुटी सी। दोनों ने तनहाई चुनी पर सच से चौंककर हम कतराये तो नहीं। एक-दूसरे का हाथ थामे बढ़ते रहे। एक-दूजे को जानने, पहचानने से चला सिलसिला समझने और महसूसने तक पहुंचा। फिर ढलने और पिघलने तक। बाहिर बरसों और यूं सदियों का सफ़र करते हम इकाई में रच-बस गये। अपने ही ढंग से, अपनी ही एक दुनिया में… वो मेरा पहला प्यार और इकलौती क़सम हो चुकी।
प्यार, सफ़र, सिलसिला चल रहा है। चलता रहेगा। हम अपनी एक दुनिया बसा लेंगे। नहीं तो किसी अतल, अबूझ या गुमनाम कोने में एक-दूजे के सहारे जी लेंगे। हर क़दम नयी-नयी बेचैनियों, ख़लिशों के साथ वही सरमस्ती है। जबात की उथल-पुथल है। न चाहे भी रहेगी। इसी सफ़र के बीच इस ट्रायोलॉजी की शक्ल में खींच ली गयी मेरी और मेरी शाइरी की यह तस्वीर यहीं रह जाएगी। हमेशा के लिए! -भवेश दिलशाद