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    Jali Coupon

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    लेव तोलस्तोय ने कुछ लघु उपन्यासाें की भी रचना की थी। उन रचनाओं के हिन्दी अनुवाद उपलब्ध नहीं थे। हिंदी पाठकों के लिए विदेशी साहित्य के अध्येता विवेक दुबे ने यह महति कार्य किया है। इस रचना को प्रस्तुत करते हुए हमें बहुत खुशी हो रही है।

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    Kahkaha

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    इस उपन्यास की कहानी एक काल्पनिक भविष्य में घटित होती है, जहाँ एक डायस्टोपियन समाज सर्वसत्तावाद के शासन में जीता है। इस समाज में, सामूहिक निगरानी सर्वव्यापी है और लोगों के व्यवहारों पर कड़ा नियंत्रण रखा जाता है। इस सर्वसत्ता का शासन ‘ट्रस्ट’ नामक एक सत्ता के हाथ में है, जो लोगों के जीवन के हर पहलू को एक्सट्रीम कडाई के साथ नियंत्रित करता है। इस सत्ता में हिंसा को मनोरंजन माना जाता है, ट्रस्ट ने नागरिकों से दो वादे किए हैं: पहला ट्रस्ट की सत्ता में किसी भी नागरिक की मृत्यु नहीं होगी। और दूसरा ट्रस्ट की सत्ता में उसके समर्पित नागरिकों का मनोरंजन हमेशा जारी रहेगा। इन वादों के बदले में, ट्रस्ट नागरिकों से पूर्ण समर्पण की मांग करता है, जो कि अनिवार्य है। ट्रस्ट के समाज में, सभी मानवीय मूल्यों,भावनाओं, रिश्तों और पारिवारिक अवधारणाओं को समाप्त कर दिया गया है। यहां तक कि प्रेम पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। ऐसे माहौल में, कहानी का नायक आनंद प्रकाश, जो हाल ही में जेल से रिहा हुआ है। नायिका वेदांती के प्रेम में पड़ जाता है। इन दोनों का प्रेम ही सत्ता के विरोध का कारण बन जाता है।

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    Mali

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    उपन्यास के विषय में – इस उपन्यास में वर्तमान नौकरशाही के कई पक्षों को उजागर किया गया है। प्रशासन और राजनीति के सकारात्मक और नकारात्मक पहलूओं को स्पष्ट किया गया है। स्त्री स्वातंत्र्य सहित कई ज्वलंत बिन्दुओं को स्पर्श किया गया है। उपन्यास की यथार्थपरकता जहाँ हमें आज के समय से साक्षात्कार कराती है वहाँ यह आसन्न संकटों के प्रति सचेत भी करती है। कथानक और पात्र हमारे आस-पास के हैं। इसमें कथा का रसायन बहुत है।

    225.00
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    Oye Chotu

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    क्या हम में से किसी ने भी होटल या ढाबे में खाना खाते समय उस खाना परोसने वाले बच्चे से यह पूछा कि… “तुमने खाना खा लिया बेटा..?” क्या एक निवाला भी मुँह में ले सकते हैं हम, यदि हमारे बच्चे ने खाना नहीं खाया हो या वो भूखा हो? हम अति असंवेदनशील हैं। (इसी उपन्यास से)

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    Parivar ki Khushi

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    लेव तोलस्तोय ने कुछ लघु उपन्यासाें की भी रचना की थी। उन रचनाओं के हिन्दी अनुवाद उपलब्ध नहीं थे। हिंदी पाठकों के लिए विदेशी साहित्य के अध्येता विवेक दुबे ने यह महति कार्य किया है। इस रचना को प्रस्तुत करते हुए हमें बहुत खुशी हो रही है।

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    PolyKushka

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    लेव तोलस्तोय ने कुछ लघु उपन्यासाें की भी रचना की थी। उन रचनाओं के हिन्दी अनुवाद उपलब्ध नहीं थे। हिंदी पाठकों के लिए विदेशी साहित्य के अध्येता विवेक दुबे ने यह महति कार्य किया है। इस रचना को प्रस्तुत करते हुए हमें बहुत खुशी हो रही है।

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    Vaya Gurgaon

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    सुमन ने कहा कि कर दी ना सीधी सट्ट जाटोंवाली बात! महेंद्र ने कहा– क्‍यों जची नहीं क्‍या, सुमन ने कहा– जाटणी हूं, जी में आ जाए तो क्‍या नी जचे। और ना जचे तो भगवान भी नहीं जचा सके। वैसे बात तो सयाणी करी है। सोचने दो महेंद्र सिहाग जी। वैसे, गोदारों का जवाईं बनने का सुख भी आसानी से नहीं मिलता। –इसी उपन्यास से

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