Description
ये छोटे-छोटे हाथ जो रोज सुबह से शाम हज़ारों लोगों को टेबल कुर्सी पर बिठा कर दौड़-दौड़ कर इज्जत से खाना खिलाते हैं…उन्हें क्या मिलता है? दो ठण्डी सूखी बची-कुची रोटियाँ, बची कुची सब्जी और रात को सोने को एक दरी और हाथों की कोहनी का तकिया?
कितना जज़्ब करता होगा एक भूखा बच्चा, जब वो अपने हाथों से अपने माता-पिता के समान लोगों को स्वादिष्ट खाना परोसता होगा, इस आशा के साथ कि जब ये सब खा लेंगे, तब उसे भी कुछ बचा कुचा मिल जाएगा। कितना धैर्य होगा उस बच्चे में जो अपनी उम्र के बच्चे को दिन में कई बार आईसक्रीम और चॉकलेट अपने हाथ से पकड़ाता है और खुद चख भी नहीं सकता। शायद ईश्वर भी इतना धैर्य नहीं रख पाएँ।
सारी सुख–सुविधाएँ होने के बावजूद व ईश्वर की हर संभव कृपा का उपभोग करने वाले हमारे नेता, अफसर व आम आदमी जरा से पैसों के लिए अपना ईमान, नैतिकता तक बेचने को तत्पर हैं… उस समाज में हम इन बच्चों से क्या आशा रखते हैं? और उनका कितना कड़ा इम्तेहान लेते हैं।
क्या हम में से किसी ने भी होटल या ढाबे में खाना खाते समय उस खाना परोसने वाले बच्चे से यह पूछा कि… “तुमने खाना खा लिया बेटा..?”
क्या एक निवाला भी मुँह में ले सकते हैं हम, यदि हमारे बच्चे ने खाना नहीं खाया हो या वो भूखा हो? हम अति असंवेदनशील हैं। (इसी उपन्यास से)
Amrita –
Insightful writing, heartwarming picturesque presentation of a orphan child
Amrita –
Heart warming presentation of child labour… picturesque presentation of his harsh kife