सैद्धातिक रूप से देवी, लेकिन व्यावहारिकता में न्यूनतम मानवीय अधिकारों से भी वंचित मातृछवियाँ पितृसत्ता को हमेशा से प्रिय रही हैं। सुपरिचित कथाकार कविता की माँ केन्द्रित कहानियों का यह विशिष्ट संग्रह माँ की परम्परापोषित रूढ़ छवियों को अलग-अलग कोणों से खोलता, खँगालता और पुनर्सृजित करता है। आधुनिक, स्वप्नदर्शी और अपनी अस्मिता के प्रति सजग इन कहानियों की माँएं यंत्रचालित खिलौना होने की नियतियों को अस्वीकार करती हैं। एक प्रौढ़ा माँ द्वारा अपने अकेलेपन से ऊबकर लिया गया विवाह का निर्णय हो या एक युवा मूर्तिकार स्त्री के कुंवारी माँ बनने का निर्णय, एक अकेली कामकाजी स्त्री के गर्भपात का निर्णय हो या एक कलाकार स्त्री का मातृत्व को आनुवांशिकता की परिधि से मुक्त करने की संकल्प यात्रा…विभिन्न मातृ चरित्रों की जटिल और आधुनिक जीवन-स्थितियों से बनी ये कहानियाँ दो पीढ़ियों की स्त्रियों के चुनने और बदलने की जद्दोजहद की कहानियाँ भी हैं। माँ के निर्णय में बेटी और पोती की सहमति तथा बेटी और बहू के निर्णय में माँ और सास की सहभागिता से ये कहानियाँ पीढ़ीगत पारस्परिकता और साहचर्य की संवेदनशीलता का सर्वथा अलग और स्पर्शी प्रतिसंसार रचती हैं।